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*क्यों है इजरायल की किताबों में भारतीय सैनिकों के किस्से, जानें*

*क्यों है इजरायल की किताबों में भारतीय सैनिकों के किस्से, जानें*

इजरायल के हाइफा शहर को आजाद कराने में भारतीय सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई थी। माना जाता है कि इजरायल की आजादी का रास्ता हाइफा की लड़ाई से ही खुला था जब भारतीय सैनिकों ने सिर्फ भाले, तलवारों और घोड़ों के सहारे ही जर्मनी-तुर्की की मशीनगन से लैस सेना को धूल चटा दी थी।

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच खूनी जंग जारी है। भारत हर पल इस जंग में इजरायल के साथ खड़ा नजर आ रहा। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि इजरायल की किताबों में भारतीय सैनिकों के किस्से पढ़ाए जाते हैं। साल में एक दिन खास उत्‍सव मनाया जाता है और भारतीय सैनिकों को वहां की सरकार याद करती है। उन्‍हें नमन करती है। तो आईये जानते हैं इसके बारे में…

दरअसल, बात प्रथम विश्व युद्ध की है। उत्तरी इज़राइल के तटीय शहर हाइफ़ा पर ऑटोमन साम्राज्य, जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी की संयुक्त सेना का कब्‍जा था। हाइफा इजरायल का एक प्रमुख शहर है ,जिसको इनके कब्जे से आजाद कराने में भारतीय सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई थी।

ब्रिटिश हुकूमत की ओर से लड़ते हुए 44 भारतीय सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया। इतिहास में इस युद्ध को कैवलरी यानी घुड़सवार सेना की आखिरी बड़ी लड़ाई के मिसाल के तौर पर देखा जाता है। क्‍योंकि भारतीय सैनिकों ने सिर्फ भाले, तलवारों और घोड़ों के सहारे ही जर्मनी-तुर्की की मशीनगन से लैस सेना को धूल चटा दी थी।

हाइफा शहर को 23 सितंबर को भारतीय सेना ने आजाद कराया था, इसलिए इसरायल हर साल भारतीय सैनिकों की याद में 23 सितंबर को हाइफ़ा दिवस मनाता है। तीन वीर भारतीय कैवलरी रेजिमेंट मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर को श्रद्धांजलि दी जाती है। इसलिए इजरायल की किताबों में भारतीय सैनिकों के किस्से लिखे हुए है। इसमें भारतीय सैनिकों के बलिदान और उनकी बहादुरी के किस्सों को स्कूल में बताया जाता है। ये युद्ध ऐसा था जिसमें भारतीय सैनिकों ने ऐसी सेना से लोहा लिया था जिनके पास गोला बारूद और मशीन गन थे।

हाइफा के युद्ध में भारतीय सैनिकों के दल का नेतृत्व जोधपुर के मेजर दलपत सिंह शेखावत ने किया था। शहर को आजाद कराने में अहम भूमिका के लिए मेजर दलपत सिंह को ‘हीरो ऑफ हाइफा ‘ के तौर पर जाना जाता है। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए मिलिटरी क्रॉस से सम्मानित किया गया।

हाइफ़ा में कक्षा तीन से पाँचवी में पढ़ने वाले स्कूली बच्चों को इतिहास की किताबों में हाइफ़ा की आज़ादी की कहानी और उसमें भारतीय सैनिकों के योगदान के बारे में बताया जाता है।

राजधानी दिल्ली में स्थित तीन मूर्ति चौक का नाम भी तीन मूर्ति-हाइफा चौक इस युद्ध की याद में किया गया है। वैसे भी तीन मूर्ति चौक का नाम भारत के तीन राज्यों (जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर) से इजरायल में भेजे गए सैनिकों के नाम पर रखा गया था।

धनंजय ढौडियाल (पहाड़ी)

संपादक, संपर्क - 7351010542

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